उल्हासनगर:
२५ नवंबर को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय मीटलेस डे के रुप में मनाया जाता है २५ नवंबर १८७९ को हैदराबाद सिंध अखंड भारत में जन्मे साधु थांवरमल लीलाराम वासवानी एक महान संत रहे हैं , जिन्होंने एम.ए. करने के बाद में प्रोफेसर बन गए व महिलाओं को सशक्त बनाने और शिक्षित करने के उद्देश्य से मीरा आंदोलन की स्थापना की स्वतंत्रता आंदोलन में भी बहुत बड़ा योगदान देने के बाद सभी को एक ही नज़र से देखते हुए प्रेम और सम्मान का उपदेश देते हुए जीवन जीया , अधिक जानकारी देते हुए उल्हासनगर व्यापारी एसोसिएशन अध्यक्ष जगदीश तेजवानी बताते हैं ३० वर्ष की उम्र में साधु वासवानी भारत के प्रतिनिधि के रूप में विश्व धर्म सम्मेलन में बर्लिन गये उनके प्रभावशाली भाषण के बाद यूरोप में धर्मप्रचार के दौरान वहां के लोगों के बीच व जीवन मे गहरा प्रभाव हुआ ,उनका मानना था कि सभी प्राणियों में एक जैसा जीवन होता हैं औऱ सबके लिये दिल मे दया भावना रहना चाहिये जीवनकाल के दौरान उन्होंने साधु वासवानी मिशन की स्थापना की जो सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता है और सभी धर्मों के महान लोगों का सम्मान करता है " मिशन का उद्देश्य सभी मनुष्यों, पक्षियों, जानवरों, चेतन और निर्जीव चीजों में केवल एक ही जीवन प्रवाहित होता है , साधु वासवानी का १९६६ में ज्योतिज्योत समा गए , १९८६ में दादा जेपी वासवानी (साधु वासवानी मिशन के पूर्व आध्यात्मिक प्रमुख) द्वारा यह प्रस्ताव रखा गया कि २५ नवंबर , साधु वासवानी की जयंती को अंतर्राष्ट्रीय माँसहीन दिवस Inernational Meatless Day के रूप में मनाया जाए। मीटलेस डे अभियान की शुरुआत जानवरों की हत्या को बचाने और रोकने के लिए शाकाहारी जीवन शैली अपनाने के लिए की गई थी अभियान को काफी सफलता मिली साधु वासवानी मिशन के कई अनुयायियों और शिष्यों व कई देशों में तब से इस दिन मांसाहार न करने का संकल्प लिया हैं तब से अंतरराष्ट्रीय माँसहीन दिवस के रुप में पूरे विश्व में मनाया जाता हैं।
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