उल्हासनगर में पर्यावरण के दुश्मन कर रहे हैं पेड़ों का कत्ल।

 





उल्हासनगर: 

ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ना हम सभी के लिए चिंता का विषय है। चिंता होना भी स्वभाविक है, क्योंकि जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में पेड़ों का क्षरण हुआ है, प्रकृति का शोषण हुआ है उससे आने वाले समय में यह ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते स्तर के रूप में एक बड़ी चुनौती बन जायेगा। आज सारा विश्व चिंतित है। धरती की सतह का तापमान बढ़ रहा है। 2050 तक यह 2 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ जाएगा और यह ग्लेशियर पिघलने लगेंगे। हमने जिस तेजी से विकास के प्रति दौड़ लगाई उसमें हमने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया। इनमें प्रकृति और पर्यावरण सबसे बड़े मुद्दे थे और अब आज साफ दिखाई दे रहा है कि हमारी नदियां हों, जंगल हों वायु, मिट्टी हो यह सब कहीं न कहीं खतरे में आ गयें हैं। हमें समझना होगा कि पेड़ों की कटाई और पर्यावरण का क्षरण समाज के लिए किस तरह चिंता का विषय है। पर्यावरण की रक्षा करने को लेकर महाराष्ट्र सरकार भले ही तमाम कवायद करें, मगर हकीकत यह है कि आज भी हरे भरे पेड़ों को मनपा, बिल्डर और स्थानीय नेताओं की तिकड़ी बलि देने में जुटी है। ये तिकड़ी शहर में मौजूद मंहगी जगहों को औने-पौने दामों पर खरीद कर उसे डिवेलप करते हैं या रिडिवेलप करते हैं। मगर, इसके लिए वहां मौजूद हरे-भरे पेड़ों को सुनियोजित तरीके से गायब कर देते है, जिसकी भनक न तो सरकार को और न ही पर्यावरण विभाग को लग पाती है। वहीं, संबंधित विभाग महज कागजी खानपूर्ति या बहानेबाजी करते दिख रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा पिछले कई सालों से उल्हासनगर में दिख रहा है. यहां लगातार वर्षों पुराने पेड़ काटे जा रहे हैं. ताजा मामला कैंप दो में बैरेक नंबर 230 का है जहाँ एक जिंदा पेड़ काटा गया है. वहीं काजल पेट्रोल पंप के पास भी एक पेड़ काटा गया है. ऐसे कई उदाहरण हैं. इस संदर्भ में पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्त्ता सरिता खानचंदानी का कहना है कि उल्हासनगर में 127 से अधिक पेड़ काटे गए हैं. उन्होंने कहा कि 2016 में बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी कि उल्हासनगर में पेड़ों की कटाई ना हो. मगर आज भी शहर में पेड़ों की कटाई बदस्तूर जारी है. वीटेसी ग्राउंड में सैकड़ों पेड़ काटे गए हैं. 

पर्यावरण के प्रति सजक रहें

बेहतर है कि हम अभी से ही पर्यावरण के प्रति सजक रहें क्योंकि अगर पर्यावरण स्वस्थ होगा तभी हम स्वस्थ होंगे। बेहतर पर्यावरण के बगैर स्वस्थ जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मैं खुद एक जागरुक नागरिक होने के नाते पेड़ों और पर्यावरण के प्रति हमेशा चिंतित रहता हूं। जब कभी देखने में आता है कि इस जगह पर इतने पेड़ काट दिये गये, उस जगह पर इतने पेड़ काटने की प्रक्रिया निरंतर चल रही है। यह सब देख निश्चिततौर पर मन में एक आक्रोश का भाव आता है। आक्रोश होना भी चाहिए कि क्योंकि अगर हम विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई इसी तेजी के साथ करते चले गये तो वो दिन दूर नहीं जब हम सभी के लिए पर्यावरण संरक्षण एक चुनौती के रूप में सामने खड़ा हो जाये।


आखिर नये पेड़ लगाने की जिम्मेदारी किसकी

मैं किसी सरकार या पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं, लेकिन पर्यावरण प्रेमी होने के नाते मेरे मन में केवल एक सवाल उठता है कि शहर में जो भी पेड़-पौधों को काटा गया। उसके एवज में किस जमीन पर पेड़ लगाए गए। अगर कहीं मनपा द्वारा पेड़ लगाए भी जा रहे हैं तो वे पेड़ देखभाल के अभाव में पूरी तरह से नष्ट हो रहे है। अगर हमें सही मायनें में पेड़ लगाने का कार्य और पर्यावऱण संरक्षण की दिशा में काम करना है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पेड़ लगाने की जिम्मेदारी किसकी हो।  विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। अपने आसपास जितने कार्य हम पर्यावरण संरक्षण के लिए कर सकते हैं, वे सभी करें।









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